ईमानदारी का फल

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एक गाव में एक मनोहर नाम का एक किसान अपने परिवार के साथ रहता था | वह बहुत गरीब था | किसी तरह मजदूरी करके घर का खर्चा चलाता था| उसके दो बेटे थे | बड़े बेटे का नाम रामू था | और छोटे बेटे का नाम राजू था ।

एक बार की बात है | राजू और रामू दोनो खेतों के पास खेल रहे थे ।तभी सामने के रास्ते एक व्यापारी व्यापार करके वापस जा रहा था | उसके थैले से एक सोने का सिक्का रास्ते में गिर गया । व्यापारी को कुछ पता ना चलने के कारण वो आगे बढ़ता चला गया ।

बच्चो ने उस सिक्के को उठा लिया और उस सिक्के के लिए लड़ने लगे | पास में ही मनोहर खेतों में काम कर रहा था। जब उसने बच्चों को लड़ते देखा तो वह उनके पास गया और बच्चों से लड़ने का कारण पूछा।

तभी उसके बड़े बेटे रामू ने मनोहर को सोने का सिक्का दिखाते कहा कि हमें यह रास्ते से मिला है । सिक्का देख मनोहर हैरान हुआ और पूछा कि ये सोने का सिक्का कहाँ से मिला?

राजू ने कहा कि दूसरे गाँव के व्यापारी का सिक्का उनके थैले से गिर गया था। जो मुझे मिला । अब ये सिक्का मेरा है जिसके लिए रामू भैया लड़ रहे है । और ये सिक्का मैं उन्हें नहीं दूँगा ।

तब मनोहर ने कहा कि तुम्हें यह सिक्का उस व्यापारी को वापस कर देना चाहिए था । तुम दोनो आज ही साथ के गाँव में जाकर उन्हें दूँढ कर ये सिक्का वापस कर आओ।

परंतु बच्चों को लाख समझाने पर भी बच्चे नहीं माने और उन्होंने सोने का सिक्का वापस करने से मना कर दिया। मनोहर ने भी हार मान ली और अपने काम में लग गया। दोनो बच्चे सोने का सिक्का पाकर बहुत खुश थे ।

अगले दिन किसान अपने मालिक का खेत जोतने गया | खेत जोतते समय एक कपडा की पोटली उसके हल में फँस गई | वह खेत जोत कर घर लौटा तो देखा की उसके हल में एक कपडा की पोटली फँसी हुई है | मनोहर ने उस कपडे को खोला तो उसमे ढेर सारे सोने, चाँदी के गहने थे |

वह गहनों को लेकर मालिक के पास पंहुचा | मालिक ने पूछा की इसमें क्या है | मनोहर ने कहा की इसमें गहने है | आपके खेत में मिला था | मालिक उसकी ईमानदारी देख कर हैरान हो गया और मनोहर से कहा की यह गहने मैंने ही रखवाये थे | तुम्हारा ईमान तौलना चाहता था |

मालिक को उसकी ईमानदारी बहुत अच्छी लगी । तो मालिक ने इसके इनाम में उसे सोने के सिक्कों से भरी एक थैली दी । और साथ ही इतने ईमानदार व्यक्ति को अनाज बेचने का काम दे दिया ।

मनोहर को उसकी ईमानदारी का फल मिल चुका था। उसने अपने मालिक का शुक्रिया अदा किया और अपने घर चल दिया।

अगले दिन ये बात आग की तरह पूरे गाँव में फैल गई। जगह जगह मनोहर की तारीफ़ होने लगी।

जब ये बात उसके बच्चों को पता लगी तो उन्हें अपनी गलती का एहसास हुआ। फिर उन्होंने वो सोने का सिक्का व्यापारी को वापस करने की ठान ली। अगली सुबह वह साथ के गाँव में जाकर उन्होंने व्यापारी को वो सिक्का वापस कर दिया।

व्यापारी को बहुत हैरानी हुई कि बच्चों ने इतनी मेहनत से उसके गाँव तक आकर वो सिक्का देने आए। इतने ईमानदार बच्चे देख उससे बहुत ख़ुशी हुई। उसने उनकी हालत देखी, जो कुछ ख़ास नहीं थी। चाहते वे बच्चे सोने के इस सिक्के को रख सकते थे। लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। ईमानदारी दिखाई।

व्यापारी ने उन्हें अपने साथ आने को कहाँ और अपने घर में ले गया। उसने एक बक्सा खोला और एक और सोने का सिक्का निकाला। और रामू के हाथ में थमा दिया और कहा कि अपनी ईमानदारी हमेशा बनाए रखना। ये एक दिन तुम दोनो को बहुत तरक़्क़ी देगी। ये तुम दोनो का इनाम है।

अब बच्चों को पता लग चुका था कि ईमानदारी का फल कितना मीठा होता है। बच्चे ख़ुशी ख़ुशी अपने घर गए। और ये बात अपने पिता जी को बताई। मनोहर भी उनके इस व्यवहार से खुश था।

मनोहर और उसके बच्चों को उनकी ईमानदारी का फल मिल चुका था | और वह अपनी ज़िंदगी सुखी – सुखी बिताने लगे | 

दोस्तों, कई लोगों को ये मूर्खतापन लग सकता है।कि इतना ईमानदार बनने की क्या ज़रूरत है? ज़रूरी नहीं कि हार व्यक्ति मालिक या व्यापारी की तरह हो । लेकिन सोचने वाली बात है कि कौन सा उस धन को रख उनकी पूरी ज़िंदगी कट जाती। ये भी हो सकता था कि व्यापारी और मालिक खोजबीन करते और मनोहर और उन बच्चों को सजा का भागीदार बनना पड़ता। लेकिन किसी डर से नहीं, बल्कि हमें खुद से ईमानदार होना चाहिए। क्यूँकि इसका फल हमेशा मीठा ही होता है ।

Ajit Gupta

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Umair Ansari

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Ankit

Yes,hamesa imandari se kaa karna chahiye